हैलो दोस्तों हमारे ब्लाग में आपका स्वागत है। आज हम इस पोस्ट में राहु काल के बारे में बताएंगे कि- राहुकाल क्या होता है (Rahukaal in Hindi) ? राहुकाल का समय कब आता है? राहु की पौराणिक कथा क्या है? राहुकाल में क्या नहीं करना चाहिए? राहुकाल की गणना कैसे की जाती है? राहु काल में शुभ कार्य करना क्यों वर्जित है? राहु का नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव क्या होता है? तो आइए जानते हैं राहु काल के बारे में।
राहुकाल क्या है ? What is Rahu Kaal in Hindi?
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राहुकाल हर दिन का एक निश्चित समय होता है जिसे वैदिक अध्ययनों के अनुसार अशुभ माना जाता है।राहुकाल का समय प्रत्येक दिन बदलता रहता है और इसकी सौरमंडल के घटना के अनुसार गणना की जाती है।भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 9 ग्रह– सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु हैं।इन ग्रहों के आधार पर राहु काल की गणना की जाती है।राहुकाल 90 मिनट का होता है, लेकिन कुछ स्थितियों में इसकी अवधि लम्बी हो सकती है।
राहुकाल का समय परिवर्तनशील है।यह हर दिन बदलता रहता है, क्योंकि ग्रहों की गति हर गुजरते समय के साथ बदलती रहती है।सूर्य उदय से लेकर सूर्य अस्त का जो वक्त होता है उसके आठवें भाग का स्वामी राहु है।इस दौरान जो समय होता है यानि 24 घंटों में 90 मिनट उसे राहुकाल कहते है।
ज्योतिष शास्त्र में राहुकाल को अशुभ माना जाता है।राहुकाल में कोई भी कार्य करना वर्जित है अर्थात कोई भी कार्य जैसे कोई मांगलिक कार्य हो, शुभ कार्य हो, आरंभ नहीं करना चाहिए।
राहुकाल में आपको शुभ कार्य या मांगलिक कार्य करने से बचना चाहिए। राहुकाल के दौरान किये गये कार्य कभी भी सफल नहीं होते या बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। राहुकाल में किये गये कार्य अक्सर पूरा नहीं होता है।
यदि आपने शुभ कार्य या मांगलिक कार्य पहले कर लिया है और राहु काल बाद में आया है तो उसका कोई असर नहीं होता है।राहु काल हर दिन आता है।कई बार तो राहुकाल शुभ चौघड़िया के समय भी आ जाता है।आप शुभ चौघड़िया का समय देखकर शुभ कार्य करते हैं लेकिन राहुकाल का ध्यान नहीं रखे तो आपको हानि हो सकती है। राहु काल का समय देखकर ही शुभ कार्य आरम्भ करना चाहिए।
राहु का पौराणिक कथा क्या है ?
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार महर्षि कश्यप के पुत्र का विवाह हिरण्य कश्यप की बहन सिंहिका से हुआ था। राहु सिंहिका का पुत्र था। जब भगवान विष्णु के प्रेरणा से देवता और दानवों ने समुद्र का मंथन किया तो उसमें से अन्य रत्नों के अलावा अमृत की भी प्राप्ति हुई।
तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रुप धारण करके देवताओं और दानवों को मोह लिया और अमृत बांटने का काम स्वंय ले लिया तथा पहले देवताओं को अमृत पान कराना शुरू कर दिया।राहु को संदेह हो गया और वह देवताओं कारुप धारण करके सूर्य देव और चन्द्रदेव के निकट बैठ गया।
भगवान विष्णु जैसे ही राहु को अमृत पान कराने लगे सूर्य देव और चन्द्रदेव ने उन्हें बताया किये देव नहीं है उसी समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सर को धड़ से अलग कर दिया। तब तक अमृत की कुछ बूंदें राहु के गले में चली गई थी जिससे उसका सर और धड़ जीवित रहा। सर को राहु और धड़ को केतु कहा जाता है।
राहु का सकारात्मक प्रभाव क्या है ?
राहु के अच्छा होने से व्यक्ति में श्रेष्ठ साहित्यकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक या फिर रहस्यमय विद्याओं के गुणों का विकास होता है। राजयोग भी फलित हो सकता है।व्यक्ति दौलतमंद होता है। कल्पना शक्ति भी तेज होती है।
राहु का नकारात्मक प्रभाव क्या है?
राहु हमारे उस ज्ञान का कारक है,जो बुद्धि के बावजूद पैदा होता है, जैसे अचानक कोई घटना देखकर आइडिया आ जाना या अचानक उत्तेजित हो जाना।
बुरा सपना देखने का कारक भी राहु होता है।भयभीत करने वाले सपने आना या अचानक से चमक कर उठ जाना ये भी राहु के बुरे प्रभाव के लक्षण माने गए है।
काला जादू, तंत्र, टोना टोटका आदि राहु ग्रह अपने प्रभाव से करवाता है तथा अचानक घटनाओं के घटने के योग राहु के कारण ही होते हैं।
बेकार के दुश्मन पैदा होना, बेईमान, धोखेबाज बन जाना, शराब पीना आदि यह सब भी राहु के अशुभ होने के कारण ही होता है।
राहुकाल का समय कब आता है ?
प्रत्येक दिन राहुकाल अपने निश्चित समय पर इस प्रकार आता है–
सोमवार–प्रात: 7:30 बजे से 9:00बजे तक(दूसरा मुहूर्त)
मंगलवार– दोपहर 3:00 बजे से 4:30 बजे तक(सातवां मुहूर्त)
बुधवार– दोपहर 12:00बजे से 1:30 बजे तक(पांचवां मुहूर्त)
गुरुवार– दोपहर 1:30 बजे से 3:00 बजे तक(छठवां मुहूर्त)
शुक्रवार– प्रात: 10:30 बजे से 12:00 बजे तक(चौथा मुहूर्त)
शनिवार– प्रात: 9:00 बजे से 10:30 बजे तक(तीसरा मुहूर्त)
रविवार– सायं 4:30 बजे से 6:00 बजे तक (आठवां मुहूर्त)
यह समय सारिणी बिल्कुल स्थिर रहता है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है।
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राहुकाल की गणना कैसे की जाती है ?
राहुकाल की गणना पूरी तरह से सूर्योदय और सूर्यास्त के आधार पर की जाती है और इसप्रकार यह प्रत्येक दिन बदलता रहता है। राहुकाल सातों दिन में निश्चित समय पर 24 घंटों में लगभग 90 मिनट या डेढ़ घंटे तक रहता है।
राहुकाल अलग- अलग स्थानों के लिए अलग-अलग होता है। सूर्य के उदय और अस्त के समय के काल को आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है।इसप्रकार 12 घंटों को बराबर 8 घंटों में बांटा जाता है।इन 12 भागों में प्रत्येक भाग डेढ़ घंटे का होता है।सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है इसलिए यह समय कुछ बदल भी सकता है।
राहुकाल में शुभ कार्य करना क्यों वर्जित है ?
वैदिक पंचांग में राहुकाल को अशुभ माना जाता है।राहुकाल के समय में किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं या कार्य में बहुत अधिक परेशानी होती है।इसे अशुभ समय के रूप में देखा जाता है।इसलिए किसी भी शुभ काम करने से पहले राहुकाल का ध्यान रखना चाहिए।
राहुकाल में क्या नहीं करना चाहिए ?
- राहुकाल में कोई भी शुभ कार्य या मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।
- इसमें नये व्यवसाय का शुभारंभ नहीं करना चाहिए।
- इसमें शादी-विवाह, सगाई आदि भी नहीं करना चाहिए।
- राहुकाल में धार्मिक कार्य या यज्ञ नहीं करना चाहिए।
- राहुकाल में कोई भी कीमती सामान जैसे घर, गाड़ी आदि भी नहीं खरीदना चाहिए।
- इस काल में महत्वपूर्ण कार्य के लिए यात्रा भी नहीं करना चाहिए।
राहुकाल का विशेष विचार रविवार, मंगलवार तथा शनिवार को आवश्यक माना गया है। बाकी दिनों में राहुकाल का विशेष प्रभाव नहीं होता है। आज हम इस पोस्ट में राहुकाल के बारे में बताएं। उम्मीद है आपको पसंद आयी होगी।