आज हम इस पोस्ट में बताएंगे कि ग्रहण क्या है? ग्रहण कितने तरह का होता है? चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse ) और सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse ) क्या होता है? इसकी पौराणिक कथा क्या है? चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse ) कब लगता है? आप सभी जानते हैं कि पूरे ब्रह्मांड में सूर्य प्रकाश का स्त्रोत है जिसके चारों ओर हमारे Planets system में जितने भी Planets या ग्रह है चक्कर लगाते हैं और इन सभी ग्रहों के अपने–अपने उपग्रह (Satellite) हैं।
जो ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। जैसे कि पृथ्वी का एक उपग्रह चन्द्रमा है और चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है। जब किसी ग्रह या उपग्रह पर किसी और ग्रह या उपग्रह के कारण सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच जाता है यानि सूर्य, किसी ग्रह या उपग्रह के बीच में कुछ समय के लिए जब कोई दूसरा ग्रह या उपग्रह आ जाता है और सूर्य का प्रकाश उस ग्रह या उपग्रह तक नहीं पहुंच पाता है। उसे ही ग्रहण कहते हैं। तो आइए जानते हैं ग्रहण के बारे में ।
ग्रहण (Eclipse) क्या है ?
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वैज्ञानिक तौर पर ग्रहण की ये घटना मात्र खगोलीय घटना है जिसके अनुसार जब एक खगोलीय पिण्ड पर दूसरे खगोलीय पिण्ड की छाया पड़ती है तब ग्रहण (Eclipse) होता है।
ग्रहण (Eclipse) कितने तरह का होता है ?
ग्रहण (Eclipse) दो तरह का होता है–
चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse )
सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse )
चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse ) –
खगोल विज्ञान के अनुसार जब पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य के बीच में आती है और सूर्य की पूरी रोशनी चन्द्रमा पर नहीं पड़ती है तो चन्द्रग्रहण होता है।चन्द्र ग्रहण अधिकांश पूर्णिमा के दिन ही होता है।
जब चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाते- लगाते पृथ्वी के ठीक पीछे आ जाता है। तब चन्द्रमा पर सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ता है क्योंकि पृथ्वी चन्द्रमा के सामने होता है जिसकी वजह से सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक नहीं पहुंच पाता है। जिसके कारण हमें चन्द्रमा नहीं दिखाई देता है।
यानि सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा एक सरल रेखा में होते हैं तो हम इसे चन्द्र ग्रहण(Lunar eclipse) कहते हैं।
चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) कब होता है ?
चन्द्र ग्रहण केवल पूर्णिमा पर ही होता है क्योंकि पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा की तुलना में थोड़ी अण्डाकार है। इसलिए ग्रहण के लिए जरुरी पूर्ण संरेखन हर पूर्णिमा पर नहीं होता है। पूर्ण चन्द्र ग्रहण कभी– कभी ही दिखाई देता है।
आमतौर पर पूरी घटना के लिए 2-3 घंटे का समय लग सकता है।एक वर्ष की अवधि में चन्द्र ग्रहण अधिक से अधिक 3 बार लग सकते हैं और कम से कम एक बार भी नहीं लग सकता है। जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा तीनों एक सीध में आते हैं और यह खगोलीय घटना होती है जिसे चन्द्र ग्रहण कहते हैं ।ध्यान रहे प्रत्येक पूर्णिमा को चन्द्र ग्रहण नहीं लगता है इसका कारण यह है की चंद्रमा अपने अक्ष पर 5 डिग्री झुकाव लिए हुए है।
सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) –
जब पृथ्वी और सूर्य के बीच चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा के कारण सूर्य ढ़लने लगता है यानि चन्द्रमा के पीछे सूर्य का छाया कुछ समय के लिए ढ़क जाता है जिससे सूर्य की कुछ या सारी रोशनी रुक जाती है जो पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाती है इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहते हैं।
जब चन्द्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और सूर्य की रोशनी कुछ समय के लिए पृथ्वी पर नहीं पड़ती है तो सूर्य ग्रहण (Solar eclipse) होता है।
सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) कब होता है ?
सूर्य ग्रहण सदैव अमावस्या के दिन ही पड़ता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी के एक सीध में आने की स्थिति केवल अमावस्या के दिन ही होती है।यही कारण है कि सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन ही होता है।
सूर्य ग्रहण की ये घटना हर अमावस्या के दिन नहीं होता है क्योंकि चन्द्रमा अपने अक्ष एक पर 5 डिग्री झुकाव लिए हुए है। इस झुकाव के कारण चन्द्रमा पृथ्वी के परिक्रमा पथ से कभी ऊपर होता है कभी नीचे होता है। केवल कभी–कभी ऐसा होता है कि ये तीनों एक सीध में आते हैं और यह खगोलीय घटना होती है जिसे सूर्य ग्रहण कहते हैं।
सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) और चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) की पौराणिक कथा क्या है ?
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब अमृत की प्राप्ति हुई । उस अमृत पान के लिए देवों और दानवों के साथ विवाद हुआ तब भगवान विष्णु ने एकादशी के दिन मोहिनी रूप धारणकर के देवों और दानवों को मोह लिया और अमृत बाँटने का कार्य स्वयं ले लिया।
उसके बाद भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग- अलग बिठा दिया।लेकिन एक असुर छल से यानि देवताओं का भेष धारण करके देवताओं की लाइन में आकर बैठ गया और अमृत पान कर लिया।
देवताओं की लाइन में बैठे चन्द्रमा और सूर्य ने उस असुर को ऐसा करते हुए देख लिया ।तब इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी।उसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से असुर का सिर धड़ से अलग कर दिया।लेकिन तब तक उसने अमृत पान कर लिया था जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई ।
उसका सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। राहु और केतु को ज्योतिष शास्त्र में छाया ग्रह कहा जाता है। इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चन्द्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा को ग्रस लेते हैं इसलिए चन्द्र ग्रहण होता है और अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण होता है।
चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) कितने तरह का होता है ?
चन्द्र ग्रहण तीन तरह के होते हैं–
- पूर्ण चन्द्र ग्रहण
- आंशिक चन्द्र ग्रहण
- उप छाया चन्द्र ग्रहण
पूर्ण चन्द्र ग्रहण (Total Lunar Eclipse)-
जिस समय चन्द्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आ जाती है और जब पृथ्वी चन्द्रमा को पूरी तरह से ढ़क लेती है उस समय पूर्ण चन्द्र ग्रहण का निर्माण होता है।
उस समय चन्द्रमा पूरी तरह से लाल नजर आता है, जिसे सूपर ब्लड मून कहा जाता है। ऐसी स्थिति सिर्फ पूर्णिमा के दिन ही बनती है। पूर्णिमा के दिन ही पूर्ण चन्द्र ग्रहण होने की पूरी सम्भावना होती है।
आंशिक चन्द्र ग्रहण (Partial Lunar Eclipse) –
सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पूरी पृथ्वी न आकर कुछ पृथ्वी की छाया चन्द्रमा के कुछ हिस्सों पर पड़ता है। पृथ्वी की यह छाया सूर्य और चन्द्रमा के कुछ खंड पर ही पड़ती है, इसलिए इसे आंशिक चन्द्र ग्रहण कहा जाता है।इस चन्द्र ग्रहण की अवधि कुछ घंटों की ही होती है।
उप छाया चन्द्र ग्रहण (Penumbral lunar Eclipse) –
जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच पृथ्वी घुमते हुए आती है लेकिन ये तीनों एक सीधी लाइन में नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में चन्द्रमा की छोटी सी सतह पर पृथ्वी के बीच के हिस्से से पड़ने वाली छाया नहीं पड़ती है।चन्द्रमा के बाकी हिस्से में पृथ्वी के बाहरी हिस्से की छाया पड़ती है, जिसे उप छाया कहते हैं।
उप छाया चन्द्र ग्रहण पूर्ण और आंशिक चन्द्र ग्रहण के मुकाबले कमजोर होता है। इसे हम साफ तौर पर नहीं देख सकते। इसमें चन्द्रमा के आगे धूल की एक परत सी छा जाती है । इसमें चन्द्रमा घटता- बढ़ता नहीं दिखाई देता है । इस चन्द्र ग्रहण में चन्द्रमा का लगभग 65% हिस्सा पृथ्वी से ढ़क जाता है।
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सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) कितने तरह का होता है ?
सूर्य ग्रहण तीन तरह के होते हैं–
- पूर्ण सूर्य ग्रहण
- आंशिक सूर्य ग्रहण
- वलयाकार सूर्य ग्रहण
पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse) –
पूर्ण सूर्य ग्रहण उस समय होता है जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफी पास रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चन्द्रमा पूरी तरह से पृथ्वी को अपने छाया क्षेत्र में ले लेता है और सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता है और पृथ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब पृथ्वी पर पूरा सूर्य दिखाई नहीं देता यह पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है।
आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse)-
जब चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आए कि सूर्य का कुछ ही भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है अर्थात चन्द्रमा, सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है।
इससे सूर्य का कुछ भाग ग्रहण प्रभावित रहता है तथा कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है तो पृथ्वी के उस भाग विशेष में लगा ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular Solar Eclipse)
जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात चन्द्रमा, सूर्य को इस प्रकार से ढ़कता है कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढ़का दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्य ग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।
आज हम इस पोस्ट में सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण से सम्बंधित सभी आवश्यक परिस्थितियों के बारे में बताएं।उम्मीद है यह पोस्ट आपको अच्छी लगी होगी। अच्छी लगे तो अपने दोस्तों में शेयर अवश्य करें ।
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