मौर्य साम्राज्य का इतिहास जाने संक्षेप में

मौर्य साम्राज्य

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  मौर्य राजवंश प्राचीन भारत का महान एवं शक्तिशाली राजवंश था। मौर्य वंश ने 137 वर्ष भारत में राज किया। इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उनके आचार्य “चाणक्य” को दिया जाता है। मौर्य साम्राज्य पाँच बड़े प्रान्तों में विभाजित था। उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला, दक्षिणापथ की सुवर्णगिरि, अवन्ति की उज्ज्ययिनी, कलिंग की तोसाली,तथा प्राची (मध्यप्रदेश) की राजधानी पाटलिपुत्र थी।

  मौर्य साम्राज्य के अन्तर्गत भारत में पहली बार राजनीतिक प्रणाली में एकरुपता आई और एक अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना हुई।

मौर्य राजवंश मे चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार एवं अशोक जैसे महान शासक हुए, जिनके प्रयासों से राज्य का सर्वागींण विकास हुआ। मौर्य वंश की समाप्ति के बाद विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन दिखाई दिए, साथ ही विदेशी आक्रांताओं के सम्पर्क से समावेशी संस्कृति का विकास हुआ।

मौर्य वंश की स्थापना

मौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य थे। मौर्य वंश प्राचीन भारत का महान और शक्तिशाली राजवंश था। मौर्य वंश की स्थापना (322 ईसापूर्व से 298 ईसापूर्व ) आचार्य चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य ने की थी। उस समय मगध राज्य का राजा नंदवंश का घनानंद था।घनानंद के पिता चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद थे। महापद्मनंद की दो रानियाँ थी,रानी अवंतिका और रानी मुरा। रानी अवंतिका का नौवां पुत्र घनानंद था तथा रानी मुरा का पुत्र चन्द्रगुप्त था।

घनानंद ने चाणक्य (विष्णुगुप्त) जिन्हें कौटिल्य कहा जाता है, उनको अपमानित करके सभा से बाहर निकाल दिया था। इसलिए चाणक्य ने अपने अपमान का बदला पाने के लिए चंद्रगुप्त से घनानंद को मरवा दिया था।और चन्द्रगुप्त को मगध साम्राज्य का राजा बना दिया।

चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम पहले चन्द्रनन्द था। राजा बनाने से पहले आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य नाम दिया था।( चन्द्र नन्द के नाम से ‘नन्द’ हटाकर अपने नाम विष्णुगुप्त कि ‘गुप्त’ जोड़ा तथा चन्द्रगुप्त  नाम मां मुरा से मौर्य बनाया।)

       मौर्य साम्राज्य के विस्तार एवं शक्तिशाली बनाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली बनकर विश्व भर में प्रसिद्ध हुआ।

मौर्य वंश के शासक

चन्द्रगुप्त मौर्य (321-298.पू.)-

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से नन्द वंश के अन्तिम शासक घनानंद को पराजित कर मौर्य वंश की स्थापना की। ब्राह्मण साहित्य में चन्द्रगुप्त मौर्य को शुद्र, बौद्ध एवं जैन ग्रन्थ में क्षत्रिय तथा मुद्राराक्षस में निम्न कुल का माना है। सर्वप्रथम विलियम जोन्स ने चन्द्रगुप्त मौर्य को सेण्ड्रोकोट्स  कहा है। एप्पियानस और प्लुटार्क ने एण्ड्रोकोट्स कहा है।

चन्द्रगुप्त मौर्य की मूर्ति

305 ई.पू. में चन्द्रगुप्त ने तत्कालीन यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया। तथा सन्धि हो जाने के बाद सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त से 500 हाथी लेकर बदले में एरिया(हेरात),अराकोसिया( कन्धार),बलूचिस्तान एवं काबुल के क्षेत्रों का कुछ भाग उसे सौंपा और अपनी पुत्री हेलेना का विवाह भी चन्द्रगुप्त से कर दिया।

अपने जीवन के अंतिम समय में पुत्र के पक्ष में सिंहासन छोड़कर चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन साधु भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली और श्रवणबेलगोला(मैसूर)जाकर 298ई.पू.में उपवास द्वारा शरीर त्याग दिया।

बिन्दुसार(298-273.पू.)-

चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार गद्दी पर बैठा । एथीनियस नामक एक यूनानी लेखक ने बिन्दुसार तथा सीरिया के शासक एण्टियोकस प्रथम के बीच मैत्रीपूर्ण पत्र व्यवहार का विवरण दिया है, जिसमें भारतीय शासक ने तीन वस्तुओं की मांग की थी-मदिरा, मीठी अंजीर, तथा दार्शनिक।  

बिन्दुसार ः आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था।

सम्राट अशोक (273-232 .पू.)

  सम्राट अशोक 273 ई.पू.में गद्दी पर बैठे, किन्तु उत्तराधिकारी युद्ध के कारण 4 वर्ष बाद उसका विधिवत् राज्यभिषेक 269ई.पू. मे हुआ।महावंश के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों को मारकर मंत्री राधागुप्त की सहायता से अपने बड़े एवं सौतेले भाई सुसीम को हटाकर गद्दी प्राप्त की। अशोक पहले ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। राजतरंगिणी के अनुसार वह शैव उपासक था। अशोक ने अपने शासन के चौथे वर्ष में बड़े भाई सुसीम के पुत्र निग्रोध के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म अपना लिया।

अशोक पहला शासक था, जिसनें अभिलेखों के द्वारा जनता को सम्बोधित किया। इसके अभिलेख राज्यादेश के रूप में जारी किया गया है।

मौर्य वंश की सैन्य व्यवस्था

 चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक विशाल व स्थायी सेना का भी गठन किया था।प्रशासन की ओर से सेना की देखभाल का उचित प्रबन्ध किया गया था आचार्य चाणक्य और मेगस्थनीज  दोनों ही सैन्य व्यवस्था का उल्लेख किए हैं।

  सैनिक प्रबन्धन का सर्वोच्च अधिकारी अन्तपाल कहलाता था।यह सीमान्त क्षेत्रों का भी व्यवस्थपक होता था। मेगस्थनीज के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना 6 लाख पैदल,50 हजार अश्वारोही,9 हजार हाथी तथा 8 सौ रथों से सुसज्जित अजेय सैनिक थे।

स्थापत्य एवं कला

   मौर्यकालीन कला को राजकीय एवं लोक कला में बांटा जा सकता है।राजकीय कला के अन्तर्गत नगर निर्माण, स्तूप ,गुफाएं तथा स्तम्भों का निर्माण हुआ।लोक कला के अन्तर्गत मुख्यतः यक्ष एवं यक्षिणियों की मूर्ति का निर्माण हुआ।मौर्य कालीन कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन अशोक के स्तम्भों में दिखाई पड़ता है।ये चमकदार एकाश्म स्तम्भ, लाल बलुआ पत्थर से निर्मित होते थे।अशोक के स्तम्भों में सिंह, घोड़ा, हाथी और बैल प्राप्त होते हैं।इन स्तम्भों में सर्वोत्कृष्ट सारनाथ का सिंहस्तम्भ का शीर्ष है।इस शीर्ष स्तम्भ पर चार सिंह पीठ सटाए बैठे हैं।ये चार सिंह एक चक्र धारण किए हुएं हैं,जिसमें24तीलियाँ हैं।यह चक्र बुद्ध के धर्म चक्र का प्रवर्तन का प्रतीक है।

स्तूप मौर्यकालीन स्थापत्य की महत्वपूर्ण देन है।साँची का महास्तूप, सारनाथ का धर्मराजिका स्तूप, आदि स्तूपों का निर्माण अशोक के काल मे ही हुआ था।ये स्तूप ईटों के बने थे।

धार्मिक स्थिति

  कौटिल्य ने भारत के प्राचीन धर्म को त्रयी कहा है।मौर्य काल में वैदिक धर्म प्रचलित था ,किन्तु कर्म काण्ड प्रधान वैदिक धर्म अभिजात ब्राह्मण तथा क्षत्रियों तक ही सीमित था।चन्द्रगुप्त जैन धर्म तथा बिन्दुसार आजीवक धर्म का अनुनायी था।अशोक प्रारम्भ में ब्राह्मण धर्म मानता था लेकिन बाद में बौद्ध धर्म का अनुनायी हो गया।

मौर्य साम्राज्य का पतन

  अशोक के बाद कुणाल शासक बना,जिसे दिव्यावदान में धर्म विवर्तन कहा गया है।अशोक के उत्तराधिकारी के रूप में कुणाल, सम्प्रति,दशरथ, शालिशुक,एवं वृहद्रथ का नाम प्राप्त होता है। वृहद्रथ मौर्य वंश का अंतिम शासक था,जिसकी हत्या उसके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185ई.पू. कर दी थी।

मौर्य साम्राज्य जैसे विस्तृत साम्राज्य के पतन के लिये किसी एक कारण का होना पर्याप्त नहीं है। स्पष्ट साक्ष्यों के अभाव में विद्वानों ने अलग-अलग कारण प्रस्तुत किए हैं।

दोस्तों आज हम इस पोस्ट में बताए कि मौर्य वंश की स्थापना किसने की?  मौर्य साम्राज्य पर शासन किसने किया?मौर्य साम्राज्य के पतन बारे में आदि की जानकारी दिए।उम्मीद है आज की हमारी पोस्ट पसंद आयी होगी।

 

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