GDP Full Form – GDP का नाम तो आप लोग सुने होंगे क्योंकि GDP हर तीन महीने में चर्चा का विषय बना रहता है। GDP का उपयोग देश की अर्थव्यवस्था मापने के लिए किया जाता है।
देश में बनने वाली सभी चीजों के उत्पादन और खपत से ही GDP की विकास दर तय होती है। अगर यह विकास दर तेज हैं तो इसका मतलब है कि देश में लोगों की आमदनी बढ़ रही है,
उन्हें नौकरियाँ मिल रही हैं, नये अवसर प्राप्त हो रहे हैं, प्राइवेट कम्पनियों के द्वारा बनाए गए सामान बाजार में बिक रहे हैं।
वैसे देश में अर्थव्यवस्था की विकास दर कम होने का यह मतलब नहीं होता है कि देश आर्थिक मंदी की तरफ बढ़ रहा है। यह विकास दर अर्थव्यवस्था के कुछ सेक्टर में ज्यादा है,
और कुछ सेक्टर में कम है। भारत की GDP Growth 2009 -2014 में 6.4% थी जबकि 2014-2019 के बीच ये 7.5% पर थी।
आज हम इस पोस्ट में जानेंगे कि GDP क्या है, GDP का अर्थव्यवस्था से क्या सम्बन्ध है, GDP क्यों कभी घट जाती है और कभी बढ़ जाती है,
इसके घटने और बढ़ने से देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होता है, GDP को कैसे मापा जाता है। तो आइये जानते हैं GDP के बारे में।
GDP क्या है ? What is GDP in Hindi?
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GDP को हिन्दी में “सकल घरेलू उत्पाद” कहते हैं। सकल का मतलब सभी , घरेलू का मतलब घर सम्बन्धी यहाँ घर का मतलब देश है तथा उत्पादन का मतलब पैदा किया जाना यानि देश में हो रहा हर तरह का उत्पादन।
उत्पादन कारखानों में,खेतों में और सेवा क्षेत्रों में होता है और इन क्षेत्रों में तरक्की या गिरावट का जो आकड़ा होता है, उसे ही GDP कहते हैं।
GDP एक थर्मामीटर की तरह है जिसके आकड़े देश के अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के बारे में बताता है।
अगर GDP का आकड़ा नीचे जाए तो आपकी आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है और अगर GDP का इकड़ा ऊपर जाए तो अर्थव्यवस्था या आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है।
एक तय वक्त में किसी देश या अर्थव्यवस्था में तैयार होने वाले सभी उत्पाद और सेवाओं को मिला दिया जाए और फिर उसकी कीमत बाजार के मुताबिक लगाया जाए तो उसे ही उस देश की अर्थव्यवस्था की GDP कहलाता है।
किसी देश की GDP से उस देश की आर्थिक सेहत का पता चलता है इसलिए इसे विकास दर भी कहा जाता है।
GDP का Full Form क्या है ?
GDP का full form Gross Domestic Product होता है तथा हिन्दी में सकल घरेलू उत्पाद होता है।
GDP क्यों जरूरी है ?
GDP किसी भी देश की आर्थिक विकास का पैमाना होता है। GDP के बढ़ने का मतलब है कि देश की आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है। GDP अगर बढ़ती है तो अर्थव्यवस्था ज्यादा रोजगार पैदा करती है।
इससे पता चलता है कि लोगों का जीवन स्तर भी आर्थिक तौर पर समृद्ध हो रहा है, किस क्षेत्र में विकास हो रहा है और कौन सा क्षेत्र आर्थिक तौर पर पिछड़ रहा है।
GDP की मापने की प्रक्रिया किसने शुरू की थी ?
1937 में अमेरिकी अर्थशास्त्री साइमन ने अमेरिका के संसद में अपनी रिपोर्ट National Income 1929-1935 पेश की।
जिसमें उन्होंने हर एक व्यक्ति, कम्पनी और सरकार जिसने भी जो भी देश की अर्थव्यवस्था में योगदान किया
उसे अपनी रिपोर्ट में शामिल किया यानि कि अर्थव्यवस्था में योगदान देने वालों को शामिल किया और यहीं से GDP की शुरुआत हुई।
भारत में भी 1950 से GDP के आधार पर अर्थव्यवस्था मापी जाती है।
GDP को कैसे मापा जाता है ?
GDP को दो तरीकों से मापा जाता है – Constant Price & Current Price.
GDP मापने के लिए आधार वर्ष तय किया जाता है यानि उस आधार वर्ष में देश का कुल जो उत्पादन था वो इस साल की तुलना में कितना बढ़ा है या घटा है। उसे ही GDP का दर माना जाता है।
इस आधार वर्ष में कीमतों को आधार बनाकर उत्पादन और सेवाओं की कीमत देखी जाती है उसी हिसाब से वृद्धि और कमी मापी जाती है। अगर उत्पादन बढ़ा है,
तो GDP बढ़ी है और अगर उत्पादन घटा है तो GDP में कमी आयी है। इसे कास्टेंट प्राइस कहते हैं जिसके आधार पर GDP तय की जाती है।
भारत में फिलहाल कास्टेंट प्राइस के आधार पर GDP की गणना की जाती है।
करेंट प्राइस में GDP के उत्पादन मूल्य में मँहगाई की दर भी शामिल होता है।
GDP का आकलन देश के अन्दर होता है यानि गणना उसी आँकड़े पर होती हैं जिसका उत्पादन देश में हुआ हो।
भारत में GDP कैसे मापा जाता है ?
भारत में कृषि (Agriculture ) ,उद्योग (Industries) और सेवा (Service) GDP के तीन अहम हिस्से हैं जिनके आधार पर GDP तय की जाती है। इसकी गिनती हर तीन महीनें में होती है, यानि हर तीन महीने में देखा जाता है कि देश का कुल उत्पादन पिछले तिमाही की तुलना में कितना कम या ज्यादा रहा है।
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इसके लिए देश में जितना भी व्यक्तिगत उपभोग होता है, व्यवसाय में जितना निवेश होता है और सरकार देश के अन्दर निवेश में जितना खर्च करती है उसे जोड़ लिया जाता है।
इसके अलावा कुल निर्यात यानि विदेश के लिए जो चीजें बेची गई है उन आयात यानि विदेश से जो चीजें देश के लिए खरीदी गई है
वो घटा दिया जाता है और जो आँकड़ा सामने आता है उसे ऊपर वाले खर्च में जोड़ दिया जाता है। यही हमारे देश की GDP है।
देश में सबसे पहले 1948 – 1949 के आधार वर्ष या Base year पर पहली बार GDP की गणना की गई थी जिसे पहली बार 1956 में ‘ Estimates of National Income’ में छापा गया था।
अगस्त 1967 में आधार वर्ष पहली बार बदला गया था। आधार वर्ष हमेशा बदलता रहता है।
इस समय भारत में GDP मापने के लिए आधार वर्ष 2011-2012 है। इस आधार वर्ष में बदलाव 2015 में किया गया था।
आधार वर्ष के बदलाव के साथ–साथ 2015 में कुछ और भी क्षेत्र शामिल किया गया। 2015 तक जीडीपी नापने के लिए कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र का यूज किया जाता था।
2015 में जीडीपी नापने के लिए कृषि क्षेत्र में पशुपालन, मछली पालन, बागवानी और अन्य कई सेक्टरों को शामिल किया गया जिससे कृषि क्षेत्र में उत्पादन का आँकड़ा बढ़ गया।
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पहले उत्पादन के क्षेत्र में टीवी, स्मार्ट फोन से आने वाले पैसों को जीडीपी में शामिल नहीं किया जाता था लेकिन 2015 में बदलाव में इन सेक्टरों को शामिल कर लिया गया।
भारत में GDP तय करने की जिम्मेदारी किसे दी गई है ?
GDP को मापने की जिम्मेदारी Ministry of Statistics and Programme Implementation के तहत आने वाले CSO (Central Statistics Office ) केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा किया जाता है।
CSO पूरे देश से आँकड़े इकट्ठा करता है और उनकी गणना कर GDP का आँकड़ा जारी करता है।
CSO उत्पादन और सेवाओं के मूल्यांकन के लिए एक आधार वर्ष तय करता है। इस आधार वर्ष में कीमतों को आधार बनाकर उत्पादन और सेवाओं की कीमत देखी जाती है और उसी हिसाब से वृद्धि और कमी मापी जाती है।
GDP मापने के तरीके में क्या–क्या कमियाँ है ?
- यदि अपने देश की कोई कम्पनी किसी दूसरे देश में निवेश करती है और वहाँ फायदा कमाती हैं तो उसका फायदा GDP में नहीं जोड़ा जाता है। इसके लिए एक अलग टर्म कि इस्तेमाल किया जाता है जिसे GNP (Gross National Product ) सकल राष्ट्रीय उत्पाद होता है।
- GDP सिर्फ आर्थिक आँकड़ा देखकर जारी की जाती है। इसमें देश की सामाजिक स्थिति या रहन –सहन के स्तर को शामिल नहीं किया गया है।
- फिलहाल जिस तरह से जीडीपी नापी जाती है उसमें कुछ अर्थशास्त्री कमियाँ भी देखते हैं। जैसे कि हर देश की अर्थव्यवस्था में कुछ ऐसा पैसा होता है, जो आधिकारिक तौर पर घोषित नहीं होता है। हम इसे काला धन कहते हैं। ये काला धन जीडीपी में शामिल नहीं किया गया है।
GDP की विकास दर कम होने से क्या असर पड़ सकता है ?
- GDP की विकास दर कम होने से नयी नौकरियाँ मिलने के मौके कम हो सकते हैं।
- GDP की विकास दर कम होने से मँहगाई बढ़ सकती है।
- GDP की विकास दर कम होने से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट यानि उत्पादन घट जाना जिससे बेरोजगारी बढ़ती है। बेरोजगारी बढ़ने से हर व्यक्ति का कामकाज, आमदनी, खर्च निवेश करने की क्षमता और देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है।
- GDP में कमी निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन जाता है क्योंकि GDP में कमी यानि देश में आर्थिक मंदी चल रही है जिससे निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
- GDP की कमी से सरकार के कल्याणकारी योजनाओं जैसे स्वास्थ्य शिक्षा, सड़कों से जुड़ी योजना, इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी योजना आदि पर असर पड़ सकता है।
वैसे GDP का विकास दर कम होने से मतलब यह नहीं है कि हम दुनिया में सबसे पीछे हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था वर्ष 2019 से पहले तक दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था थी।
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और अब विकास की रफ्तार में कमी के बावजूद भारत दुनिया के कई विकसित और विकासशील देशों से आगे हैं।
अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अपना खर्च बढ़ाना चाहिए
ताकि बाजार में ज्यादा पैसा आये और इससे नये रोजगार और नये अवसर पैदा हो।निवेश बढ़ाने के लिए देश और विदेश के निवेशकों को नये मौके दिये जाएं।
लोगों को टैक्स में और छुट दी जानी चाहिए ताकि लोगों को ज्यादा पैसा मिल सके और खर्च कर सके।
वैसे तो इस समय देश भर में लाकडाउन ने अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया है।
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