आप लोग भूकम्प (Earthquake) के बारे में सुने होगे कि भूकम्प इस शहर में आया, इसकी तीव्रता इतनी रही । तो आइये जानते है कि भूकम्प क्या होता है? भूकम्प आने कारण, भूकम्पीय तरंगें क्या होती है? भूकम्प की तीव्रता कैसे मापा जाता है? विश्व में भूकम्पों का वितरण, भूकम्प के प्रभाव तथा इससे बचाव आदि के बारे में।
भूकम्प (Earthquake)–
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भूकम्प (Earthquake) भू-पृष्ठ पर होने वाला आकस्मिक कम्पन है जो भूगर्भ में चट्टनो के लचीलेपन या समस्थति के कारण होने वाले समायोजन का परिणाम होता है । यह प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारणों से हो सकता है।
Earthquake (भूकम्प) के प्राकृतिक कारण-
प्राकृतिक कारणों में ज्वालामुखी क्रिया, विवर्तनिक, अस्थिरता, संतुलन स्थपाना के प्रयास वलन एवं भ्रंशन प्लुटोनिक घटनाएं व् भूगर्भिक गैसों का फैलाव आदि शामिल किये जाते है रीड के ‘प्रत्यास्थ-पुनश्चलन सिद्धांत’ के अनुसार प्रत्येक चट्टान में एक तनाव सहने की क्षमता होती है ।
उसके बाद यदि तनाव और अधिक हो जाए तो चट्टान टूट जाती है तथा टूटा हुआ भाग पुनः अपने स्थान पर आ जाता है। इस प्रकार चट्टान में भ्रंशन घटनाएं होती है और भूकम्प आते है ।
भूकम्प (Earthquake) के कृत्रिम या मानवीय कारण-
कृत्रिम या मानव निर्मित भूकम्प (Earthquake) मानवीय क्रियाओं की अवैज्ञानिकता के परिणाम-स्वरूप होते है। इस सन्दर्भ में विवर्तनिक रूप में अस्थिर प्रदेशों में सड़कों, बांधों, विशाल, जलाशयों आदि का उदाहरण लिया जा सकता है। इसके आलावा परमाणु परिक्षण भी इसके लिए उत्तरदायी हैं ।
भूकम्प आने के संकेत-
भूकम्प (Earthquake) आने से पहले वायुमंडल में रेडॉन गैसों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। अतः इस गैस की मात्रा में वृद्धि का होना उस प्रदेश विशेष में भूकम्प (Earthquake) आने का संकेत होता है।
जिस जगह ये भूकम्प तरंगे उत्पन्न होती है उसे भूकम्प मूल(focus) कहते है तथा जहाँ सबसे पहले भूकम्पीय तरंगों का अनुभव किया जाता है उसे भूकम्प केन्द्र (Epi-centre) कहते है।
भूकम्प (Earthquake) की गहराई के आधार पर भूकम्पों को तीन वर्गों में रखा जा सकता है-
1.सामान्य भूकम्प –(0-50) किमी
2.मध्यवर्ती–(50-250) किमी
3.अधिक गहरे या पातालीय भूकम्प-(250-700) किमी
भूकम्प (Earthquake) के इस दौरान जो ऊर्जा भूकम्प मूल से निकलती है, उसे ‘प्रत्यास्थ ऊर्जा (Elastic Energy)’ कहते है।
भूकंपीय तरंगे (Earthquake Waves)-
Earthquake के दौरान कई प्रकार की भूकंपीय तरंगे उत्पन्न होती है जिन्हें तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है –
प्राथमिक या लम्बात्मक तरंगे (Primary or Logitudinal Waves)-
भूकम्प (Earthquake) की इस तरंग को ‘P’ तरंगे कहते है ये अनुदैर्ध्य तरंगे होती है तथा ध्वनि तरंगो की भांति चलती है तीनो भूकम्पीय तरंगों में सर्वाधिक तीव्र गति इसी की होती है। इनका वेग 8-14 किमी प्रति सेकंड होता है।
यह ठोस के साथ-साथ तरल माध्यम में भी चल सकती है फिर भी ठोस की तुलना में तरल माध्यम में इसकी गति मंद होती है ‘S’ तरंगो की तुलना में इसकी गति 66% अधिक होती है ।
अनुप्रस्थ या गौण तरंगे (Secondary or Transverse Waves)-
इन्हें ‘S’ तरंगे भी कहा जाता है । ये प्रकाश तरंगों की भांति चलती है। इनका वेग 4-6 किमी प्रति सेकंड होता है। ये सिर्फ ठोस माध्यम में ही चल पाती है, तरल माध्यम में प्रायः लुप्त हो जाती है। चूंकि ये पृथ्वी के क्रोड से गुजर नहीं पाती, अतः ‘S’ तरंगों से पृथ्वी के क्रोड के तरल होने का अनुमान लगाया जा सकता है। ‘P’ तरंगों की तुलना में इसकी गति 40% कम होती है।
धरातलीय तरंगें (Surface or Long Waves)-
इस प्रकार की तरंगों को ‘L’ तरंगें कहा जाता है ये पृथ्वी के ऊपरी भाग को ही प्रभावित करती है। ये अत्यधिक प्रभावशाली तरंगें है एवं सबसे लम्बा मार्ग तय करती है ।
इनकी गति काफी धीमी होती है, इनका वेग 3 किमी प्रति सेकंड से कम होता है एवं यह सबसे देर में पहुचती है परन्तु इनका प्रभाव सबसे विनाशकारी होता है। इस तरंगों की खोज डी० एच० लव नामक भुकम्प्वेत्ता ने किया था।
‘P’ और ‘S’ तरंगे युग्म में चलती है। P-S की गति सर्वाधिक होती है; Pg-Sg की गति न्यूनतम होती है जबकि P*-S* की गति दोनों के मध्य होती है।
भूकम्प (Earthquake) की तीव्रता को किससे मापा जाता है?
भूकम्पीय तरंगों की तीव्रता को मापने के लिए भूकम्प लेखी या सीस्मोग्राफ (Seismograph) का प्रयोग किया जाता है। इसमें तीन स्केल का प्रयोग किया जाता है जो निम्नवत् है-
रॉसी फेरल स्केल (Rossy Feral Scale)-
इसमें मापांक का स्तर 1 से 11 होता है।
मरकेली स्केल (Mercali Scale)-
यह एक अनुभव प्रधान स्केल है इसमें मापांक के 12 स्तर है ।
रिक्टर स्केल (Richter Scale)-
यह एक गणतीय मापक है जिसकी तीव्रता 0 से 9 तक होती है और रिक्टर स्केल पर प्रत्येक अगली इकाई पिछली इकाई की तुलना में 10 गुना अधिक तीव्रता रखता है । रिक्टर पैमाने का अविष्कार 1935 ई० में अमेरिका के चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर द्वारा किया गया।
समान भूकंपीय तीव्रता वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को ‘समभुकम्पीय रेखा’ या भूकम्प समाघात रेखा (Isoseismaol Line) कहते है । एक ही समय पर आने वाले भूकंपीय क्षेत्रों को मिलाने वाली रेखा होमोसीस्मल लाइन (Homoseismal Lines) कहलाती है ।
विश्व में भूकम्पों का वितरण-
विश्व में भूकम्प के ऐसे क्षेत्र मोटे तौर पर दो विवर्तनिक घटनाओं से सम्बंधित है-
- प्लेट के किनारों के सहारे
- भ्रंशों (Fault) के सहारे
विश्व के भूकम्प की कुछ विस्तृत पेटिया है जो निम्नलिखित है –
प्रशांत महासागरीय तटीय पेटी-
इस पेटी में विश्व का सबसे विस्तृत क्षेत्र आता है जहाँ सम्पूर्ण विश्व के 63% भूकम्प आते है । इस क्षेत्र में चिली, कैलिफोर्निया, अलास्का, जापान, फिलिपिन्स, न्यूजीलैंड आदि आते है।
मध्य महाद्वीपीय पेटी-
पेटी में विश्व के 21% भूकम्प आते है यह प्लेटीय अभिसरण का क्षेत्र है एवं इसमें आने वाले अधिकांश भूकम्प संतुलनमूलक तथा भ्रंशमूलक है ।
यह पट्टी केप वर्डे से शुरू होकर अटलांटिक महासागर, भूमध्यसागर को पारकर आल्प्स, काकेशस, हिमालय जैसी नवीन पर्वत श्रेणिया से होते हुए दक्षिण की ओर मुड़ जाती है और दक्षिण पूर्वी द्वीपों में जाकर प्रशांत महासागरीय पेटी में मिल जाती है । भारत का भूकम्प क्षेत्र इसी पेटी के अन्तर्गत आता है ।
मध्य अटलांटिक पेटी-
यह मध्य अटलांटिक कटक (Ridge) में सिप्टबर्जन तथा आइसलैंड (उत्तर) से लेकर बोवेट द्वीप (दक्षिण) तक विस्तृत है इनमे सर्वाधिक भूकम्प भूमध्यरेखा के आसपास पाए जाते है सामान्यतः इस पेटी में कम तीव्रता के भूकम्प आते है एवं इनका सम्बन्ध प्लेटों के अपसरण एवं रूपांतरण भ्रंशो से है ।
अन्य क्षेत्र में भूकम्प-
पूर्वी अफ्रीका की लम्बी भू-भ्रंश घाटी अदन की खाड़ी से अरब सागर तक का क्षेत्र तथा हिन्द महासागर की भूकंपीय पेटी सम्मिलित की जाती है ।
भूकम्प (Earthquake) के प्रभाव-
1.भूकम्प (Earthquake) भूमि को हिलाकर विस्थापित कर देता है और इसके झटको के द्वारा बड़ी-बड़ी इमारतों को गंभीर नुकसान पहुचता है, भूमि का फटना, अभियांत्रिक संरचनाओं जैसे- बाँधों, पुलों तथा परमाणु शक्ति स्टेशनों के लिए बड़ा नुकसान होने की सम्भावना रहती है ।
इससे मानवीय जन हानि के साथ-साथ अन्य पशुओं और जीवो की भी नुकसान व् हानि होती है ।
2.Earthquake से भूस्खलन और हिमस्खलन होता है जो पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में क्षति का कारण हो सकता है जैसे- बिजली का संपर्क टूट जाता है, मार्ग अवरुद्ध हो जाता है इससे शहर विशेष के अन्य शहरों से संपर्क टूट जाते है और यातायात बंद हो जाते है ।
3.जब झटको के कारण जल संतृप्त दानेदार पदार्थ अस्थायी रूप से अपनी क्षमता को खो देता है और एक ठोस से तरल रूप में परिवर्तित हो जाता है तब मिट्टी का द्रवीकरण हो जाता है परिणाम स्वरूप बड़ी इमारतों, पुलों का झुकाव या नुकसान होने की सम्भावना होती है ।
4.समुद्र के भीतर भूकम्प से अथवा भूकम्प के कारण भूस्खलन से समुद्र में टकराने से सुनामी आ सकती है जैसे- इंडोनेशिया में सुनामी (हिंदमहासागर के कारण) ।
5.भूकम्प के बाँधों के क्षतिग्रस्त हो जाने की स्थिति में बाढ़ आने की सम्भावना भी प्रबल होती है जिससे भी भारी क्षति होती है ।
इसे भी जाने –
- Planet(ग्रह ) के बारें में पूरी जानकारी हिन्दी में –
- भारत (India) की भौगोलिक स्थिति,राज्य,राजधानी व् अन्य जानकारी-
भूकम्प (Earthquake) से बचाव कैसे करें-
1.यदि भूकम्प आने के समय आप घर में हो तो मजबूत फर्नीचर या टेबल के नीचे सिर और चेहरे को ढकें।
2.भूकम्प के झटके आने पर घर के अन्दर ही रहे और झटके बंद हो जाने पर ही घर से बाहर निकले ।
3.अगर भूकम्प के दौरान मलबे के नीचे दब जाए तो अपने मुंह को रुमाल से ढके।
4.मलबे में दबे होने के दौरान आप अपने दबे होने के संकेत दे जिससे कि बचाव दल आपको बचा सके । यदि आपको कुछ समझ नहीं आ रहा है तो आप चिल्लाकर संकेत भेज सकते है ।
5.यदि आप घर से बाहर है तो आप किसी इमारत, वृक्ष या ऐसी कोई चीज जिसके गिरने से आपको नुकसान हो उससे दूर ही रहे ।
आज हम आपको इस पोस्ट में भूकम्प (Earthquake) के बारे में बताएं। उम्मीद है कि आप इसके बारे में अच्छी तरह समझ गए होंगे। यह पोस्ट अच्छी लगे तो ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और अन्य लोगों में शेयर भी जरूर करें।
यह भूकंप के बारे में बहुत ही उत्तम जानकारी है।
thanks
Good information